गन्ने की खेती मुख्य रूप से देश के कई राज्यों में किसानों द्वारा की जाती है ऐसे में किसान नए वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर गन्ना उत्पादन के साथ-साथ अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं उत्तर प्रदेश में चल रही बसंतकालीन गन्ना बुआई के संबंध में अपर मुख्य सचिव, चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग ने गन्ना बुआई के संबंध में जानकारी बतायी
उन्होंने कहा कि विभाग की पंचामृत योजना के तहत पांच घटक हैं जिनमें ट्रेंच विधि से गन्ने की बुआई गन्ने के साथ सहफसली खेती धान प्रबंधन ड्रिप विधि से सिंचाई और ट्रेंच मल्चिंग शामिल हैं किसान इन घटकों को अपनाकर अपना उत्पादन बढ़ा सकते हैं
पंचामृत योजना के तहत बुआई करने से किसानों को ये लाभ मिलेगा
बसंत ऋतु में ट्रेंच विधि से गन्ना बोने पर जहां 60-70 प्रतिशत उपज प्राप्त की जा सकती है वहीं गन्ने के साथ मूंग एवं उड़द की सहफसली खेती करके भी अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है इन दलहनी फसलों की जड़ों में पाए जाने वाले जीवाणुओं द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अवशोषित करके मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाई जा सकती है सिंचाई की ड्रिप विधि के माध्यम से हम सिंचाई के पानी को बचा सकते हैं और गन्ने की जड़ों के पास आवश्यक सिंचाई पानी की आपूर्ति कर सकते हैं और उपज में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकते हैं
जबकि धान प्रबंधन तकनीक के अंतर्गत रैटून प्रबंधन यंत्र के माध्यम से उतनी ही उपज 20-25 प्रतिशत कम लागत पर प्राप्त की जा सकती है। ट्रैश मल्चिंग के माध्यम से हम मिट्टी की नमी को संरक्षित कर सकते हैं मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ बढ़ा सकते हैं और साथ ही खरपतवारों को भी नियंत्रित कर सकते हैं
जानिए किसान गन्ना बोने का सही समय क्या है
गन्ना बुआई के बारे में अधिक जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि तापमान को ध्यान में रखते हुए बसंतकालीन गन्ने की बुआई 15 फरवरी से शुरू कर देनी चाहिए और गन्ना बुआई का काम अधिकतम 30 अप्रैल तक पूरा कर लेना चाहिए गन्ना विकास विभाग द्वारा गठित महिला स्वयं सहायता समूहों को सिंगल बड विधि के माध्यम से नई गन्ना प्रजातियों की अधिक से अधिक पौध तैयार करने का सुझाव दिया गया ताकि 25-30 दिन बाद उन पौधों को किसानों में वितरित किया जा सके।
किसानों को गन्ने की नई विकसित किस्मों की बुआई करनी चाहिए
गन्ना विकास विभाग के सचिव ने कहा कि किसान बीज गन्ना एवं गन्ना किस्म अनुमोदित उप समिति द्वारा उत्तर प्रदेश के लिए अनुमोदित गन्ना किस्मों की ही बुआई करें अनुमोदित किस्मों से कीट एवं रोगों से लड़ने के साथ-साथ उपज एवं शर्करा स्तर में वृद्धि होगी क्षमता है वसंतकालीन गन्ने की बुआई के लिए नई गन्ने की प्रजातियाँ 13235 को 15023 को लाख 14201 कोश 17231 कोश 14233 कोश 15233 को लाख 14204 15207 (मध्य एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए) को लाख 15466 (पूर्वी उत्तर प्रदेश) उ.प्र किसान गेहूँ (बंजर भूमि के लिए) आदि की बुआई करके अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं
गन्ने की फसल में कितना उर्वरक का छिड़काव करें
गन्ना विकास विभाग के सचिव ने बसंतकालीन गन्ना बुआई के दौरान उर्वरकों के संतुलित प्रयोग पर जोर देते हुए कहा कि उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए अन्यथा 180 किग्रा नाइट्रोजन 80 कि.ग्रा फास्फोरस 60 कि.ग्रा पोटाश एवं 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट का प्रयोग 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करें नाइट्रोजन की मात्रा को तीन भागों में बांटकर तीन अलग-अलग समय पर प्रयोग करना चाहिए
इसके लिए नैनो यूरिया का उपयोग करें
इन तत्वों की पूर्ति के लिए 130 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई के समय डालना चाहिए यूरिया 500 किग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट, 100 कि.ग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश एवं 25 कि.ग्रा जिंक सल्फेट का प्रयोग करें शेष 260 किग्रा यूरिया यह मात्रा बुआई के बाद तथा मानसून से पहले दो बार शीर्ष ड्रेसिंग के रूप में दें इसके लिए नैनो यूरिया के प्रयोग से उर्वरकों की कार्यक्षमता बढ़ जाती है उन्होंने बताया कि गन्ने में फास्फोरस की पूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट से करने पर 11 प्रतिशत सल्फर की अतिरिक्त पूर्ति होती है, जिससे उपज में शर्करा प्रतिशत बढ़ जाता है
इसका प्रयोग खेत तैयार करते समय अवश्य करना चाहिए।
मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की आपूर्ति के लिए प्रति हेक्टेयर 10 किलोग्राम पीएसबी के साथ 100 क्विंटल सड़ी हुई खाद या 50 क्विंटल जमा हुई मिट्टी या 25 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट डालें। इसका प्रयोग खेत तैयार करते समय अवश्य करना चाहिए। कार्बनिक पदार्थों के उपयोग से मिट्टी की जल धारण क्षमता तथा मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि होती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है। कीट नियंत्रण के लिए फिप्रोनिल 0.3 ग्राम 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नालियों में पैडों के ऊपर डालें और ढक दें।
गन्ने के बीज का उपचार कैसे करें
गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग बीज जनित रोग है अर्थात इस रोग का प्राथमिक संक्रमण बीज गन्ने के माध्यम से होता है इसलिए किसानों को गन्ना बोने से पहले बीज का उपचार अवश्य करना चाहिए। बीज उपचार के लिए 112 ग्राम रसायन को 112 लीटर पानी में 0.1 प्रतिशत की दर से कार्बेन्डाजिम या थायोफिनेट मिथाइल के साथ मिलाकर गन्ने के एक या दो आंख के टुकड़ों को 10 मिनट तक उपचारित करें और फिर बुआई करें। इस रोग से पूर्ण सुरक्षा पाने के लिए रोगमुक्त, शुद्ध एवं स्वस्थ्य विभागीय नर्सरियों, पंजीकृत गन्ना बीज उत्पादकों की नर्सरियों अथवा अपने स्वस्थ खेतों से ही बीज बोयें।
लाल सड़न रोग से ग्रसित खेतों में कम से कम एक वर्ष तक गन्ना न बोयें तथा गन्ने के स्थान पर अन्य फसलें बोकर फसल चक्र अपनायें क्योंकि लाल सड़न रोग का रोगज़नक़ मेजबान पौधे यानि गन्ने के बिना भी 6 महीने तक सक्रिय रहता है संक्रमित गन्ने की कटाई न करें
कीट नियंत्रण के लिए क्या करें
दीमक सफेद ग्रब और जड़ छेदक जैसे भूमिगत कीटों से बचाव के लिए 5 किलोग्राम जैविक कीटनाशक कवक मेटा राइज़ियम एनिसोपली और बवेरिया बैसियाना का उपयोग करें। इस मात्रा का प्रयोग प्रति हेक्टेयर 2 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर अवश्य करें
खेत की तैयारी के समय गहरी जुताई करें तथा अंतिम जुताई के समय यदि 10 कि.ग्रा. खेत में ट्राइकोडर्मा (अंकुश) का 2-3 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने से मिट्टी में लाल सड़न रोग के रोगज़नक़ कोलेटोट्राइकम फाल्केटम के संक्रमण को रोका जा सकेगा। जिससे लाल सड़न रोग फैलने की संभावना काफी कम हो जाती है
ट्राइकोडर्मा एक जैविक उत्पाद है जो गन्ने की फसल को लाल सड़न रोग के साथ-साथ उकठा और पाइन एप्पल जैसी मृदा जनित बीमारियों से बचाता है और खाने से इन बीमारियों के कवक को नष्ट कर देता है।